New Movie : Bison Review “बायसन कलामादन” रिव्यू: कला, खेल और समाज की भावनाओं का अद्भुत संगम

Bison : तमिल सिनेमा अपनी गहराई, यथार्थ और भावनाओं के लिए जाना जाता है, और निर्देशक मारी सेल्वराज की नई फिल्म “बायसन कलामादन” (Bison Kalamadan) उसी परंपरा को और मजबूत करती है। यह फिल्म एक स्पोर्ट्स ड्रामा है, जो न सिर्फ कबड्डी जैसे देसी खेल की आत्मा को दर्शाती है, बल्कि सामाजिक संघर्ष, सपनों और उम्मीदों की एक गहरी कहानी भी कहती है।

कहानी: खेल से आगे की जंग

फिल्म की कहानी एक ऐसे युवक की है जो कबड्डी का खिलाड़ी बनने का सपना देखता है, लेकिन वह एक ऐसे माहौल में बड़ा होता है जहाँ हर दिन जीवित रहना ही संघर्ष है। उसका गांव दो गुटों में बँटा हुआ है, जहां संघर्ष, भय और असमानता ने जीवन को कठिन बना दिया है।
इस कठिन माहौल में यह खिलाड़ी न सिर्फ खेल के मैदान में, बल्कि जीवन के मैदान में भी लड़ाई लड़ता है — समाज से, परंपराओं से और अपने भीतर के डर से।

मारी सेल्वराज ने कहानी को इस तरह से बुना है कि कबड्डी सिर्फ एक खेल नहीं रह जाता, बल्कि आत्मसम्मान और अस्तित्व की लड़ाई का प्रतीक बन जाता है।

निर्देशन: मारी सेल्वराज का सिनेमाई जादू

मारी सेल्वराज अपनी फिल्मों में हमेशा सामाजिक यथार्थ को बड़े सहज ढंग से दिखाते हैं।
“बायसन कलामादन” में भी उन्होंने अपने सिग्नेचर स्टाइल को बनाए रखा है —

  • नॉनलीनियर एडिटिंग,
  • ब्लैकएंडव्हाइट और कलर ट्रांज़िशन,
  • और प्रतीकों (सिंबॉलिज़्म) का प्रयोग।

फिल्म की एडिटिंग बेहद रचनात्मक है। वर्तमान टाइमलाइन को ब्लैक एंड व्हाइट में और फ्लैशबैक को रंगों में दिखाया गया है। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, रंग धीरे-धीरे लौटते हैं — यह विज़ुअल तरीका यह दर्शाता है कि हमारी यादें और संघर्ष ही जीवन में रंग भरते हैं।

किरदार और अभिनय

फिल्म का मुख्य आकर्षण है डी. विक्रम का दमदार प्रदर्शन। उन्होंने अपने किरदार को केवल शरीर से नहीं, बल्कि आत्मा से जिया है।
वह एक ऐसे युवक की भूमिका निभाते हैं जो सपने देखता है, गिरता है, फिर उठता है — लेकिन हार नहीं मानता।

उनका अभिनय बेहद इमोशनल और इंटरनल है — कई बार बिना कुछ बोले ही वह दर्शकों के दिल तक पहुँच जाते हैं।
पसुपति, जो उनके पिता का किरदार निभाते हैं, ने भी शानदार काम किया है। एक पिता की संरक्षण और भय के बीच की द्वंद्व भावना को उन्होंने बखूबी दिखाया है।

सपोर्टिंग कास्ट में अनुपमा परमेश्वरन और राजिशा विजयन ने अपने किरदारों को जीवंत बना दिया है।

सामाजिक परतें: जाति नहीं, इंसानियत की कहानी

मारी सेल्वराज की फिल्मों में जाति और सामाजिक भेदभाव की थीम अक्सर दिखाई देती है। लेकिन इस बार उन्होंने इसे बहुत ही सूक्ष्म और प्रतीकात्मक रूप में पेश किया है।
यह फिल्म किसी वर्ग या जाति का नाम नहीं लेती, लेकिन हर दृश्य में हमऔरवे की मानसिकता को उजागर करती है।

इसका सबसे बड़ा प्रभाव यह है कि कहानी सार्वभौमिक (universal) बन जाती है — चाहे आप तमिलनाडु से हों या देश के किसी और हिस्से से, आप इस दर्द और संघर्ष को महसूस कर सकते हैं।

खेल की आत्मा और प्रेरणा

“बायसन कलामादन” सिर्फ खेल की कहानी नहीं है।
यह एक ऐसे खिलाड़ी की कहानी है जो हर दिन एक नई लड़ाई लड़ता है — गरीबी से, समाज से और अपनी परिस्थितियों से।
यह फिल्म बताती है कि सफलता सिर्फ मैदान में नहीं, जीवन के हर मोड़ पर संघर्ष से मिलती है।

कबड्डी के दृश्य बेहद ऑथेंटिक और रोमांचक हैं। भले ही फिल्म हर तकनीकी पहलू पर ज्यादा ध्यान नहीं देती, लेकिन यह खेल के जज़्बे को बखूबी दर्शाती है।

तकनीकी पहलू: खूबसूरत सिनेमैटोग्राफी और संगीत

फिल्म की सिनेमैटोग्राफी बेहतरीन है — हर फ्रेम एक पेंटिंग की तरह दिखता है। गांव की मिट्टी, कबड्डी के मैदान की धूल, और खिलाड़ियों के चेहरों की थकान — सब कुछ कैमरे में बेहद वास्तविक दिखता है।
संगीत फिल्म की भावनात्मक गहराई को और मजबूत करता है। पृष्ठभूमि संगीत (BGM) हर दृश्य में कहानी के साथ सांस लेता है।

कुछ कमजोरियां भी हैं

हालांकि फिल्म बेहतरीन है, पर इसका दूसरा भाग थोड़ा लंबा लगता है। कुछ सीन अनावश्यक रूप से खिंचे हुए हैं, जिससे गति (pace) धीमी पड़ती है।
इसके अलावा, कुछ सहायक किरदार (जैसे राष्ट्रीय टीम का कोच) उतने गहराई वाले नहीं लगते।

लेकिन यह छोटी कमियां फिल्म की समग्र ताकत को कम नहीं करतीं।

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