दिल्ली में विधानसभा चुनावों के बीच एक बार फिर से जबर्दस्त चुनावी हलचल देखने को मिल रही है। मतदाताओं में उत्साह साफ तौर पर दिखाई दे रहा है, और चुनावी मतदान प्रतिशत में वृद्धि के संकेत मिल रहे हैं। मुस्तफाबाद और बाबरपुर जैसे इलाकों में मतदान प्रतिशत उम्मीद से अधिक है। मुस्तफाबाद में तो वोटिंग का प्रतिशत 27 फीसदी तक पहुँच चुका है, वहीं बाबरपुर में भी मतदान का प्रतिशत 30 फीसदी को पार कर गया है। इन इलाकों में मतदाताओं में गजब का उत्साह देखने को मिल रहा है।
दिल्ली की इस चुनावी प्रक्रिया में एक खास बात यह देखने को मिल रही है कि मुस्लिम बहुल इलाकों में खासा मतदान हो रहा है।. बाबरपुर जैसे इलाकों में जहाँ मुस्लिम आबादी का प्रतिशत ज्यादा है, वहाँ मतदाता जोश-खरोश से मतदान में हिस्सा ले रहे हैं। हालांकि, यह भी कहा जा रहा है कि आम आदमी पार्टी (AAP) के पक्ष में माहौल बन रहा है, लेकिन बीजेपी और कांग्रेस के उम्मीदवार भी अपनी पूरी ताकत लगा रहे हैं। साथ ही, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) भी इस चुनावी माहौल में अपनी जड़ें जमाने की कोशिश कर रही है।
हालांकि, मतदाता उत्साह बढ़ाने के लिए चुनाव आयोग ने विशेष व्यवस्था की है। वाहनों और रिक्शों का भी इंतजाम किया गया है ताकि लोगों को पोलिंग बूथ तक लाया जा सके। विशेष रूप से मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में मतदान बढ़ाने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं। राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए हर संभव कोशिश कर रही हैं।
दिल्ली में इस बार चुनावी रणनीतियाँ और आंकड़े पहले की तुलना में थोड़ा अलग हो सकते हैं। 2015 और 2020 के चुनावों के परिणामों ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी को बड़ी सफलता दिलाई थी, लेकिन लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने दिल्ली में शानदार प्रदर्शन किया था। इस बार फिर से विधानसभा चुनाव में कुछ ऐसे ही समीकरण बनने की संभावना है।
मुस्लिम वोटरों की एकजुटता और उनकी मतदान प्रक्रिया पर भी गहरी नजर रखी जा रही है। हालांकि, यह हमेशा नहीं कहा जा सकता कि मुस्लिम मतदाता एकजुट होकर किसी एक पार्टी को वोट देंगे। पिछले चुनावों में कई बार देखा गया है कि उनका वोट विभाजित होता है, लेकिन आमतौर पर वे बीजेपी के खिलाफ एकजुट रहते हैं।
दिल्ली में कुल 70 सीटें हैं, और इन 70 सीटों में कुछ खास सीटें सुरक्षित हैं जिनका विशेष ध्यान रखा जा रहा है। इन सुरक्षित सीटों पर दलित, आदिवासी, और मुस्लिम वोटरों की अहम भूमिका होती है। कई राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस बार दिल्ली की चुनावी स्थिति पर दारोमदार इन वोटर्स के रुझान पर हो सकता है।
दिल्ली चुनाव के इस समर में अभी तक के रुझान यह दर्शाते हैं कि मतदाताओं के उत्साह में कमी नहीं आई है। वहीं, मुस्लिम बहुल इलाकों में अधिक मतदान प्रतिशत यह संकेत करता है कि उन इलाकों में राजनीतिक पार्टियों ने अपने-अपने पक्ष में माहौल बनाने में सफलता पाई है। अब चुनावी नतीजों के लिए सबकी नजरें इन इलाकों और मतदाताओं के रुझानों पर हैं।